जिम्मेदारी आती है तो, राते भारी होती है समझौतों में फसकर लड़ने की तैयारी होती है सब उम्मीदे दफ़न हुई जो जान तुम्हारी होती है उनको खुद से ज्यादा सबकी खुशियाँ प्यारी होती है एक तुम्हारे न होने से दुनिया जान चुका हूँ मैं दर्द पिता का क्या होता है सब कुछ जान चुका हूँ मैं तुमने थाली लाकर दी हम पानी तक न ला पाए जिसमे सुखद अंत होता वो कहानी तक न ला पाए ऐसी भी क्या कसम जुबा पर वाणी तक न ला पाए तुम भी ऐसे छोड़ गए हम आँसू तक न ला पाए तुम्हे नही जाने देंगे अब मन में ठान चुका हूँ मैं दर्द पिता का क्या होता है सब कुछ जान चुका हूँ मैं वे घर की बुनियाद चरण में स्वर्ग ठिकाना होता है पथ से न भटके हम सब यह डर बैठाना होता है सब कहते है जुबा पे उनकी न ही बहाना होता है सच तो ये है उनको को घर का खर्च चलाना होता है चिंता व्यथा दुआ पीडाएं जीवन मान चुका हूँ मैं दर्द पिता का क्या होता है सब कुछ जान चुका हूँ मैं भाई के राजा बहनों का ताज रहे है पापा जी कम वेतन में उपहारों का राज रहे है पापा जी भुला के गलती कल की जीते आज रहे है पापा जी हम जिसकी दम पर बजते वो साज रहे है पापा जी खुदा फरिश्ता भगवन तुमको ईश्वर मान चुक...
रूठी है घर की दीवारें आँगन भी खाली खाली है इस घर की सोन चिरैया भी इस घर से जाने वाली है छत आँगन चौखट दीवार पूजा का कमरा है उदास माँ चुपके चुपके रोती है न भूख लगे न लगे प्यास कल से तुलसी के चौरा पे सांझ बाती कौन लगाएगा कल से गैया के बच्चों को दो रोटी कौन खिलाएगा आंखों आँखों बदल उमड़े उम्मीद पिघलने वाली है कल से पापा के कपड़े माँ की चाबी कौन संभालेगा कल से बाबा के मुहावरों का मतलब कौन निकलेगा कल से घर के हर हिस्से में एक खामोशी छा जाएगी अलमारी में रख्खी किताब भी लबरिस हो जाएगी मायूस हुई घर की चीजें मायूस चाय की प्याली है वह जाएगी अपने हिस्से लेकर यादों के कुछ किस्से सूना सूना रह जाएगा घर आँगन महक उठा जिससे हम सबकी यही दुआएं है वो जहां रहे आबाद रहे देने वाला हर खुशिया दे जो भी उसकी फरियाद रहे उसको सागर से मिलना है कब नदी ठहरने वाली है