प्रगटे महावीर जयंती पर, पावन जहाजपुर धन्य किया
अपना रंग बदल बदल करके, प्रभु मुनिसुव्रत में धार लिया
प्रतिमा पाषाण प्रकट होती, पर स्पंदन कर लेती है,
नैनो की दिव्य रोशनी से, भव दुख ताप हर लेती है
गन्दोधक मस्तक लगा लगा, पापी भी नेक हो जाता है,
श्रावक कलशा ले खड़े रहे, खुद अभिषेक हो जाता है
ऐसी पावन भारत भू पर, स्वस्ति हो धाम हो वंदन हो
उन मुनिसुव्रत की मूरत को, शत शत प्रणाम हो वंदन हो
जब प्रशासनों की उच्च मशीनें, रंचित हिला नही पाती
भक्तों की टोली जाए तब, हाथों ही हाथों उठ जाती
हल्की भारी हो क्षण क्षण मे,कोमल कठोर हो मर्जी से
कमलासन तिष्ठ हुए बाबा, स्वस्ति माता की अर्जी से
मस्तिक पर स्वास्तिक बना बना, स्वस्ति को इंगित करती है
करदे स्वस्ति मय यह वसुधा, जो मुक्ति वधु से वरती है
भू तल से बाबा प्रगटाए, सुवासित स्वस्ति हो वंदन हो
उस मुनिसुव्रत की मूरत को, शत शत प्रणाम हो वंदन हो
कर जोड़ खड़ा द्वारे भगवन, पूजन को प्रासुक द्रव्य लिए
जल चंदन अक्षत पुष्प दीप, नैवेद्य धूप फल साथ लिए
करता हूँ अर्पण तन मन धन, हे दीन बंधु तुम चरणो में
शब्द अभिषेक करने आया, मै पुष्प सुगंधित वर्णों में
जैसे विशाल वन दावानल, पंछी बुझए तो सफल कहाँ
त्यों कृपासिंधु गुण गाने मे, ये अल्प बुद्धि भी सफल कहाँ
षट दस स्वर्गो के देव सभी, करते प्रणाम हो वंदन हो
उस मुनिसुव्रत की मूरत को शत शत प्रणाम हो वंदन हो!
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