रूठी है घर की दीवारें आँगन भी खाली खाली है
इस घर की सोन चिरैया भी इस घर से जाने वाली है
छत आँगन चौखट दीवार पूजा का कमरा है उदास
माँ चुपके चुपके रोती है न भूख लगे न लगे प्यास
कल से तुलसी के चौरा पे सांझ बाती कौन लगाएगा
कल से गैया के बच्चों को दो रोटी कौन खिलाएगा
आंखों आँखों बदल उमड़े उम्मीद पिघलने वाली है
कल से पापा के कपड़े माँ की चाबी कौन संभालेगा
कल से बाबा के मुहावरों का मतलब कौन निकलेगा
कल से घर के हर हिस्से में एक खामोशी छा जाएगी
अलमारी में रख्खी किताब भी लबरिस हो जाएगी
मायूस हुई घर की चीजें मायूस चाय की प्याली है
वह जाएगी अपने हिस्से लेकर यादों के कुछ किस्से
सूना सूना रह जाएगा घर आँगन महक उठा जिससे
हम सबकी यही दुआएं है वो जहां रहे आबाद रहे
देने वाला हर खुशिया दे जो भी उसकी फरियाद रहे
उसको सागर से मिलना है कब नदी ठहरने वाली है
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