वधु बनकर शरद आई, दिया बाती उठा लाई,
सभी के राम ले आई, मेरी बाती नहीं लाई।।
करो मे थाम के दीपक, तुम्हारे नाम के दीपक,
कही मंदिर सड़क चौतर, जला घर द्वार में दीपक,
नदी तट पर खड़ा हूँ मैं, कतारो मे सजे दीपक,
उसी की अगवानी में, उसी की राह तकता हूँ
सभी के गणपति लाई, मेरी लक्ष्मी नहीं लाई।।
अकेले पन की आवाजे, पटाखों से नही जाती,
नए कपड़े लड़ी झालर, उजालो से नही जाती,
मिठाई भोज की खुशबू भला बीमार को भाती,
दुखी मन से यही कहता, विरह की पीर को सहता
सभी का हर्ष तो लाई मेरी खुशियाँ नहीं लाई।।
दिए मे डूब कर बाती, समर्पित देह कर देती,
निभाकर प्रीत दीपक से, सभी संताप हर लेती,
जलाकर नेह के घृत से, सुखी संबंध कर देती,
चिढ़ाते दीप घर घर के, सितारे चांद अंबर के
सभी के दीप तो लाई, मेरी बाती नहीं लाई।।
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